धर्मपुत्र कौं दै हरि राज -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल
भगवान का द्वारिकागमन




     
धर्मपुत्र कौं दै हरि राज। निज पुर चलिबे कौं कियौ साज।
तब कुंती बिन‍ती उच्‍चारी। सुनौ कृपा क‍रि कृष्‍न मुरारी।
जब-जब हमकौं बिपदा परी। तब-तब प्रभु सहाइ तुम करी।
तुम बिनु हमहिं राज किहिं काम। सूर बिसारहु हमें न स्‍याम।।281।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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