महाराज दशरथ मन धारी -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ
राम-वन-गमन


  
महाराज दशरथ मन धारी ।
अवधपुरी कौ राज राम दै, लीजै ब्रत बनचारी।
यह सुनि बोली नारि कैकई, अपनौ बचन सँभारौ।
चौहद वर्ष रहैं बन राघव, छत्र भरत-सिर धारौ।
यह सुनि नृपति भयौ अति व्‍याकुल, कहत कछू नहिं आई।
सूर रहे समुझाइ बहुत, पै कैकई-हठ नहिं जाई॥30॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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