स्वायंभू मनु के सुत दोइ। तिनकी कथा कहौं, सुनि सोइ।
डतानपाद एक कौ नाम। द्वितिय प्रियव्रत अति अभिराम।
ध्रुव उतानपाद-सुत भयौ। हरि जू ताकौं दरसन दयौ।
बहुरि दियौ ताकौं अस्थान। देहिं प्रदच्छिन जहँ ससि-भान।
कहौं सो कथा, सुनौ चित धारि। सूर कह्यौ भागवतनुऽसारिं।।8।।