हरि ज्यौ धरयौ हंस अवतार -सूरदास

सूरसागर

एकादश स्कन्ध

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राग बिलावल
हंसावतार वर्णन




हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौ।।
हरि ज्यौ धरयौ हस अवतार। कहौ सु कथा सुनौ चित धारि।।
सनकादिक ब्रह्मा पै जाइ। करि प्रनाम पूछयौ या भाइ।।
किधौ विषय को चित गहि रह्यौ। कै विषयनि ही चित कौ गह्यौ।।
नीरछीर ज्यौ दोउ मिलि गए। न्यारे होत न न्यारे कए।।
हम तौ जतन कियौ बहु भाइ। तुम अब कहौ सु करै उपाइ।।
ब्रह्मा कौ उत्तर नहि आयौ। तब सनकादिक गर्व बढ़ायौ।।
ज्ञान हमारौ अतिसय जोइ। ब्रह्मा रह्यौ निरुत्तर होइ।।
ब्रह्मा हरिपद ध्यान लगाए। तब हरि हंस रूप धरि आए।।
सबनि सो रूप देखि सुख पायौ। सबहिनि उठि कै माथौ नायौ।।
सनकादिकन कह्यौ या भाइ। हमकौ दीजै प्रभु समुझाइ।।
को तुम क्यौ करि इहाँ पधारे। परम हस तब बचन उचारे।।
यह तौ प्रश्न जोग है नाही। एकै आतम हम तुम माही।।
जौ तुम देह देखि कै पूछौ। तौहू प्रश्न तुम्हारौ छछौ।।
पंचभूत ते सब तन भए। कहा देखि कै तुम भ्रमि गए।।
यह कहि उनकौ गर्ब निबारयौ। बहरौ या विधि बचन उचारयौ।।

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