सुकदेव कह्यौ, सुनौ हो राउ -सूरदास

सूरसागर

षष्ठ स्कन्ध

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राग बिलावल
श्रीशुक-उत्तर



सुकदेव कहयौ, सुनौ हो राउ। पतित-उधारन है हरि-नाउ।
अंतकाल हरि हरि जिन कह्यौ। ततकालहिं तिन हरि-पद लह्यौ।
तिन मैं कह्यौ एक की कथा। नारायन कहि उधरयौ जथा।
ताहि सुनै जो कोउ चितलाइ। सूर तरै सोऊ गुन गाइ।।3।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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