गगन घहराइ जुरी घटा कारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौड मलार
सुख-विलास



गगन घहराइ जुरी घटा कारी।
पवन-झकझोर, चपला-चमक चहुँ ओर, सुवन-तन चितै नँद डरत भारी।।
कह्यौ बृषभानु की कुँवरि सौं बोलि कै, राधिका कान्ह घर लिए जा री।
दोउ घर जाहु सँग, गगन भयौ स्याम रँग, कुँवर-कर गह्यौ बृषाभानु-बारी।।
गए बन धन ओर, नवल नंद-किसोर, नवल राधा, नए कुंज भारी।
अंग पुलकित भए, मदन तिन तन जए, सूर प्रभु स्याम स्यामा बिहारी।।684।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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