जौ पै राखति हौ पहिचानी।
लौ अबकै वह मोहनि मूरति, मोहि दिखावहु आनि।।
तुम रानी वसुदेव गेहिनी, हम अहीर ब्रजवासी।
पठै देहु मेरे लाल लड़ैतै, वारौ ऐसी हाँसी।।
भली करी कसादिक मारे, सब सुर काज किए।
अब इनि गैयनि कौन चरावै, भरि भरि लेति हिए।।
खान पान परिधान राज सुख, सो कोउ कोटि लड़ावै।
तदपि ‘सूर’ मेरौ बाल कन्हैया, माखन ही सचु पावै।। 3179।।