राज रवनि गावतिं हरि कौ जस -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ
ज़रासंधवध



राज रवनि गावतिं हरि कौ जस ।
रुदन करत सुत कौ समुझावति, राखतिं स्रवननि प्याइ सुधारस ।।
तुम जनि जिय डरपहु रे बालक, कृपासिंधु कै सरन सदा बस ।
तजि जिय सोच तात अपने कौ, करि प्रतीति निरभय ह्वै कै हँस ।।
जिन प्रभु जनक सुता प्रन राख्यौ, अरु रावन के सीस सकल नस ।
सोई ‘सूर’ सहाइ हमारै, मोचन गोप गयंद महा पस ।। 4211 ।।

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