ब्यास कह्यौ जो सुक सौं गाइ। कहाँ सो सुनौ संत चित लाइ।
व्यास पुत्र-हित बहु तप कियौ। तब नारानन यह बर दियौ।
ह्वै है पुत्र भक्त अति ज्ञानी। जाकी जग मैं चलै कहानी।
यह वर दै हरि कियौ उपाइ। नारद मन संसय उपजाइ।
तब नारद गिरिजा पै गए। तिनउौं या बिधि पूछत भए।
मुंडमाल सिब-ग्रीवा कैसी ? मोसौं बरनि सुनाबौ तैसी।
उमा कही मैं तौ नहीं जानी। अरु सिवहूँ मोसौं न बखानी।
नारद कह्यौ अब पूछौ जाइ। बिनू पूछैं नहिं देहि बताइ।
उमा जाइ सिव कौं सिर नाइ। कह्यौ सुनौ बिनती सुरराइ।
मुंडमाल कैसी तब ग्रीवा। बाकी मोहि बतावौ सींवा।
शिव बोले तब बचन रसाल। उमा आहि यह सो मुंडमाल।
जब जब जनम तुम्हारौ भयौ। तब तब मुंडमाल मैं लयौ।
उमा कह्यौ सिव तुम अविनासी। मैं तुम्हरे चरननि की दासी।
मेरे हित इतनौ दुख भरत। मोहि अमर काहे नहिं करत ?
तब शिव उमा गए ता ठौर। जहाँ नहीं द्वितीया कोउ और।
सहस-नाम तहँ तिन्हैं सुतायौं। जातैं आप अमर-पद पायौ।
तहाँ हुतौ इक सुक को अंग। तिहिं यह सुन्यौं सकल परसंग।
उड़त-उड़त सुख पहुँच्यौ तहाँ। नारि व्यास की बैठी जहाँ।
सिबहू ताके पाछैं धाए। पै ताकौं मारन नहिं पाए।
व्यास-नारि तबहीं मुख बायौ। तब तनु तजि मुख माहिं समायौ।
द्वादस वर्ष गर्भ मैं रह्यौ। व्यास भागवत तबहीं कह्यौ।
बहुरौ जब जदुपति समुझायौ। तेरी गाता बहु दुख पायौ।
तू जिहि हित नहिं बाहर आवै। सो हमसौं कहि क्यौं न सुनावै।
प्रभु तुव भाया मोहिं सतावत। तातैं मैं बाहर नहिं आवत।
हरि कह्यौ अब न ब्यापिहै माया। तब वह गर्भ छाँड़ि जग आया।
माया मोह ताहि नहिं गह्यौ। सुन्यौ ज्ञान सो सुमिरन रह्यौ।
जैसै सुक कौं ब्यास पढा़यौ। सूरदास तैसैं कहि गायौं।।226।।