नमो नमो है कृपानिधान।
चितवत कृपा-कटाक्ष तुम्हारैं, भिटि गयौ तम-अज्ञान।
मोह-निसा कौ लेस रह्यौ नहिं, भयौ विवेक-विहान।
आतम-रूप सकल घट दरस्यौ, उदय कियौ रवि-ज्ञान।
मैं-मेरो अब रहो न मेरैं, छुट्यौ देह अभिमान।
भावै परौ आजुही यह तन, भावै रहौ अमान।
मेरै जिय अब यहै लालसा, लीला श्री भगवान।
स्त्रवन करौं निसि-बासर हित सौं, सूर तुम्हारी आन।।33।।