कहाँ हे स्याम, कहँ गमन कीन्हौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंड मलार
बृंदा के धाम से प्रमुदा के धाम गमन


कहाँ हे स्याम, कहँ गमन कीन्हौ।
कहाँ तुम रहत, कबहूँ दरस देत नहिं धोखै गए आइ हम मानि लीन्हौ।।
नैन आलस भरे, चरन जुग लरखरे, कहा हौ डरे, सो कहौ मोसौं।
रैनि कहँ बसे, तिय कौन सौ रसे हौ, उर करज कसे, सो कहौ मोसौ।।
भले जू भले नंदलाल वेउ भली, चरन जावक पाग जिनहि रंगी।
'सूर' प्रभु देखि अँग अंग बानक कुसल, मैं रही रीझि वह नारि चंगी।।2704।।

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