माधौ जू यह मेरी इक गाइ।
अब आज तैं आप-आगैं दई, लै आइयै चराइ।
यह अति हरहाई, हटकत हूँ बहुत अमारग जाति।
फिरति बेद-बन ऊख उखारति, सब दिन अरु सब राति।
हित करि मिलै लेहु गोकुलपति, अपने गोधन माहँ।
सुख सोऊँ सुनि वचन तुम्हारे, देहु कृपा करि बाहँ।
निधरक रहौ सूर के स्वामी, जानौ फेरि।
मन-ममता रुचि सौं रखवारी, पहिलैं लेहु निवेरि।।51।।