महर-महरि कैं मन यह आई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राम सारंग
बृंदावन-प्रस्‍थान


                     
महर-महरि कै मन यह आई।
गोकुल होत उपद्रव दिन प्रति, बसिए बृंदावन मैं जाई।
सब गोपनि मिलि सकटा साजे, सबहिनि के मन मैं यह भाई।
सूर जमुन-तट डेरा दीन्‍हे, पाँच बरष के कुँअर कन्‍हाई।।402।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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