जागौ हो तुम नंद-कुमार।
हौं बलि जाउँ मुखारबिंद की, गो सुत मेलौ खरिक सम्हार।
अब लौं कहा सोए मन मोहन, और बार तुम उठत सबार।
बारहिं बार जगावति माता, अंबुज-नैन भयौ भिनुसार।
दधि मथि कै माखन बहु दैहौं सकल ग्वाल ठाढ़े दरबार।
उठि कै मोहन बदन दिखावहु, सूरदास के प्रान अधार।।403।।