मैं दुहिहौं मोहिं दुहन सिखावहु।
कैसें गहत दोहनी घुटुवनि कैसें बछरा थन लै लावहु।
कैसे लै नोई पग बाँधत, कैसे लै गैया अटकावहु।
कैसें धार दूध की बाजति, सोइ सोइ विधि तुम मोहिं बतावहु।
निपट भई अब साँझ कन्हैया, गैयनि पै कहुँ चोट लगावहु।
सूर स्याम सौं कहत ग्वाल सब, धेनु दुहन प्रातहि उछि आवहु।।401।।