भोजन भयो भावते मो‍हन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


भोजन भयो भावते मो‍हन। तातोइ जेंइ जाहु गो-गोहन।
खीर, खांड़, खीचड़ो सँवारी। मधुर महेरी गोपनि प्यारी।।
राइ भोग लियौ भात पसाई। मूंग ढरहरी हींग लगाई।।
सद माखन तुलसी दै तायौ। घिरत सुबास कचोरा नायौ।।
पापर बरी अंचार परम सुचि। अदरख अरु निबुअनि ह्वैहै रुचि।।
सूरन करि तरि सरस तोरई। सेम सींगरी छौंकि झोरई।।
भरता भंटा खटाई दीनी। भाजी भली-भाँति दस कीन्ही।।
साग चना मरूसा चौराई। सोवा अरु सरसों सरसाई।।
बथुआ भली-भाँति रचि राँध्यौ। हींग लगाइ राइ दधि सांध्यौ।।
पोई परवर फाँग फरी चुनि। टेटी ढेंढ़स छोलि कियौ पुनि।।
कुनरु और ककोरा कौरे। कचरी चारु चिंचींडा सौरे।।
भले बनाइ करेला कीने। लौन लगाई तुरंत तरि लीने।।
फूले फूल सहिजना-छौंके। मन रुचि होइ नाज के औंके।।
फूल करील कली पाकर नम। फरी अगस्त करी अमृत सम।।
अरुइहिं इमली दई खटाई। जेंवत षटरस जात लजाई।।
पेंठा बहुत प्रकारनि कीन्है। तिन सौं सबै स्वाद हरि लीन्है।।
खीरा राम तरोई तामैं। अरुचिनि रुचि अंकुर जिय जामै।।
सुन्दर रूप रतालू रातौ। तरि तरि लीन्हौ अबहीं तातौ।।
ककरी कचरी अरु कचनारयौ। सरस निमोननि स्वाद संवारयौ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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