तुरत गए नँद-सदन कन्हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी
गृह-गमन


तुरत गए नँद-सदन कन्हाई।
अंकम दै राधा घर पठई, बादर जहँ-तँह दिए उड़ाई।।
प्यारी की सारी आपुन लै, पीतांबर राधा उर लाई।।
जो देखै जसुमति हरि ओढ़े, मन यह कहति कहाँ धौं पाई।।
जननी-नैन तुरत लखि लीन्हौ, तबहिं स्याम इक बुद्धि-उपाई।।
सूरदास जसुमति सुत सौं कहै, पीत ओढ़नी कहाँ गँवाई।।692।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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