मथुरा के लोगनि सुख पाए।
नटवर भेष कछे नँदनदन, सँग अकूर के आए।।
प्रथमहिं रजक मारि अपनै कर, गोप बूँद पहिराए।
तोरि धनुष लीला भटनागर, तब गज खेल खिलाए।।
रगभूमि मुष्टिक चनूर हति, भुज बल ताल बजाए।
नगर नारि दै गारि कंस कौ, अजसुत जुध्द बनाए।।
बरषहि सुमन अकास महा धुनि दुदुभि देव बजाए।
चढ़ि चढ़ि अमर बिमान परम सुख, कौतुम अंबर छाए।।
कस मारि सुरराज काज करि, उग्रसेन सिर नाए।
माता पिता बंदि तै छोरे, 'सूर' सुजस जग गाए।।3087।।