नृप सुदच्छिन महादेव ध्यायौ।
नाथ तुव कृपा पितु बैर लीयौ चहौ, पाइँ परि बहुरि यौ कहि सुनायौ।।
अगिनि के कुंड तै असुर परगट भयौ, द्वारिका देस ताकौ बतायौ।
आइ उन दुद जब कियौ हरि पुरी मैं, चक्र ताकौ ह्वा तै भगायौ।।
हति सुदच्छिन दई जारि वारानसी, कह्यौ तै मोहिं ह्याँ क्यौ पठायौ।
‘सूर’ के प्रभू सौ बैर जिन मन धरयौ, आपुनौ कियौ तिन आपु पायौ।। 4207।।