हरि हरि हरि सुमिरौ सब कोइ2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
पौड्रकवध



कहौ जाइ करै जुद्ध बिचार। साँच झूठ ह्वै है निरधार।।
दूत आइ निज नृपहिं सुनायौ। तब उन मन मैं जुध ठहरायौ।।
जहाँ तहाँ तै सैन बुलाई। तब लगि जदुपति पहुँचे जाई।।
पौड्रक सुनि तब सन्मुख आयौ। पाँच छोहिनी दल सँग ल्यायौ।।
सेना देखि सस्त्र सँभारे। जदुपति के लोगनि परहारे।।
हरि कह्यौ तू अजहूँ संभारि। साँच झूठ जिय देखि बिचारि।।
ताकी मृत्यु आइ नियरानी। जो हरि कही सो मन नहि आनी।।
तब जदुपति निज चक्र सँभारयौ। ताकी सेना ऊपर डारयौ।।
सैन मारि पुनि ताकौ मारयौ। तासु तेज निज मुख मैं धारयौ।।
ऐसे हैं त्रिभुवन पति राइ। जिनकी महिमा वेदनि गाइ।।
कोउ भजै काहू परकार। 'सूरदास' सो उतरे पार।। 4206।।

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