जागौ मोहन भोर भयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
बृंदावन-विहार


 
जागौ मोहन भोर भयौ।
बदन उघरि स्याम तुम देखौ, रबि की किरनि प्रकास कियौ।।
संगी सखा ग्वाल सब ठाढ़े, खेलत हैं कछु खेल नयौ।।
आंगन ठाढ़ी कुवंरि राधिका, उनकौं कहा दुराइ लयौ।।
हंसि मोहन मुसुकाइ कहौ, कब हौं वृषभानु कैं गेह गयौ?।।
सूरदास-प्रभु तुम्हरे दरस कौं, सर्वस लै हरि आपु दयौ।।1185।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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