नृपति बचन यह सबनि सुनायौ।
मुहांचुही सैनापति कीन्ही, सकटैं गर्ब बढ़ायौ।
दोउ कर जोरि भयौ उठि ठाढ़ौ, प्रभु-आयसु मैं पाऊँ।
ह्याँ तैं जाइ तुरतहीं मारौं कहौ तौ जीवत ल्याऊँ।
यह सुनि नृपति हरष मन कीन्हौह, तुरतहिं बीरा दीन्हौ।
बारंबार सूर कहिं ताकों आपु प्रसंसा कीन्हौ।।61।।