सूर कह्यौ भागवतऽनुसारि -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग
हरि-वियाग, पांडव-राज्‍य-त्‍याग, उत्तर-गमन




हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौ।
हरि वियोग पांडव तजि राज। गए बन, भयौं प‍रीच्छित राज।
सहौं सु कथा, सुनो चित धारि। सूर कह्यौ भागवतऽनुसारि।।285।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः