दै मैया भौंरा चक डोरी।
जाइ लेहु आरे पर राख्यौ, काल्हि मोल लै राखे कोरी।।
लै आए हँसि स्याम तुरतहीं, देखि रहे रँग-रँग बहु डोरी।
मैया बिना और को राखे, बार-बार हरि करत निहोरी।
बोलि लिए सब सखा संग के, खेलत कान्ह नंद की जोरी।
तैसेइ हरि, तैसेइ सव बालक, कर भौंरा-चकरिनि की जोरी।।
देखति जननि जसोदा यह सुख, बार-बार बिहँस त मुख मोरी।
सूरदास प्रभु हँसि-हँसि खेलत, ब्रज-बनिता डारतिं तृन तोरी।।669।।