जननि मथति दधि, दुहत कन्हाई।
सखा परस्पर कहत स्याम सौं, हम हूँ सौं तुम करत चँड़ाई।।
दुहन देहु कछु दिन अरु मोकौं, तब करिहौ मो समसरि आई।
जब लौं एक दुहौगे तब लों, चारि दुहौंगो नंद दुहाई।।
झूठहिं करत दुहाई प्रातहि, देखहिंगे तुम्हरी अधिकाई।
सूर स्याम कह्यौ काल्हि दुहैंगे, हमहूँ तुम मिलि होड़ लगाई।।668।।