बृंदावन स्यामलघन नारि संग सोहैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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रागमारू बिहागरौ
झूलन


बृंदावन स्यामलघन नारि संग सोहैं (जू)।
ठाढ़े नव कुंजनि तर, परम चतुर गिरिधर बर,
राधा पति, पति राधा अरस परस मोहै (जू)।।
नीपछाहँ जमुनतीर, ब्रज-ललना-सुभग भीर,
पहिरे अँग बिबिध चीर, नवसत सब साजे।
बार बार बिनय करति, मुख निरखति पाँइ परति,
पुनि पुनि कर धरति, हरति पिय के मन काजे।।
बिहँसति प्यारी समीप, घन-दामिनि-संग-रूप,
कंठ गहति कहति कंत, झूलन की साधा।
जमुन पुलिन अति पुनीत, पिय इहाँ हिंडोर रचौ,
'सूरजरु' प्रभु हँसति कहति ब्रजतरुनि राधा।।2829।।

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