भक्त बछल बसुदेवकुमार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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श्रीकृष्ण का अक्रूर-गृह-गमन
रागपरज


भक्त बछल बसुदेवकुमार।
चले एक दिन सुफलकसुत कै, पाडव हेत बिचार।।
मिल्यौ सु आइ पाइ सुधि मग मैं, बार बार परि पाइ।
ग़यौ लिवाइ सुभग मंदिर मैं, प्रेम न बरन्यौ जाइ।।
चरन पखारि धारि जल सिर पर, पुनि पुनि दृगनि लगाइ।
विविध सुगध चीर आभूषन, आगै धरे बनाइ।।
धन्य धन्य मैं धन्य गेह मम, धनि धनि भाग हमारे।
जो प्रभु ज्ञान ध्यान नहि आवत, तिन मम गृह पग धारे।।
प्रभु तुव माया अगम अगोचर, लहि न सकत कोउ पार।
दीजै भक्ति अनन्य कृपा करि, होइ सु मम उद्धार।।
अरु जिहि कारन प्रभु पग धारे, कहियै सोइ विचार।
करहुँ ताहि तुम्हरी किरपा तैं, आयसु माथे धार।।

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