आज हौं राज-काज करि आऊँ।
बेगि सँहारौ सकल घोष-सिसु, जौ मुख आयुस पाऊँ।
मोहन-मुर्छन-बसीकरन पढ़ि, अगमति देह बढ़ाऊँ।
अंग सुभग सजि, ह्वै मधु-मूरति, नैननि माहँ समाऊँ।
घसि कै गरल चढ़ाइ उरोजनि, लै रुचि सौं पय प्याऊँ।
सूरज सोच हरौं मन अबहीं, तौ पूतना कहाऊँ।।49।।