मनहिं मन अक्रूर सोच भारी।
जननि कौ दुखित करि इनहिं मैं लै चल्यौ, भई व्याकुल सबै घोष नारी।।
अतिहिं ये बाल है भोजी नवनीत के जानि लीन्हे जात दनुज पासा।
कुवलया, मल्ल मुष्टिकऽरु चानूर से, कियौ मैं कर्म यह अति उदासा।।
फेरि लै जाउँ ब्रज स्याम बलराम कौ, कस लै मोहि तब जीव मारै।।
'सूर' पूरन ब्रह्म निगम नाही गम्य, तिनहिं अक्रूर मन यह बिचारै।।3012।।