मोहन जागि हौ बलि ग़ई -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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मोहन जागि हौ बलि ग़ई।
ग्वालबालक द्वार ठाढ़े, बेर बन की भई।।
पीत पट करि दूरि मुख तै, छाँड़ि दै अरसई।
अति आनदित होति जसुमति, देखि कै दुति नई।।
जागे जंगम जीव पसु खग, और ब्रज सबई।
‘सूर’ के प्रभु दरस दीजै, अरुन किरन छई।। 1 ।।

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