तुम्हारोइ चित्र बनाउ कियौ।
तब कौ इंदु सम्हारि तुरत ही, मनसिज साज लयौ।।
व्रत गहि जुग अँगुरी के बीचहिं, उन भरि पानि पियौ।
पुर प्रति करतिं लेख कौ प्रारंभ, तबहिं प्रहार कियौ।।
ह्वै पथ बिकल चकित अति आतुर, भरमति है जु हियौ।
भृत्ति विलंबि पृष्ठ दै स्यामा, स्यामै स्याम बियौ।।
या ग़ति पाइ रही राधा अब, चाहति अमृत पियौ।
'सूरदास' प्रभु प्रीति उलटि परी, कैसै जात जियौ।। 203 ।।