जैसे भयौ कूर्म-अवतार। कहौ सुनौ सो अब चित धार।
नरहरि हिरनकसिप जब मान्यौ। अरु प्रहलाद राज बैठारयौ।
ताकौ पुत्र विरोचन रया। ताकैं बहुरि पुत्र बलि भयौ।
बलि सुरपति कौ बहु दुख दयौ। तब सुरपति हरि-सरनै गयौ ।
हरि जू अपनौ विरद सँभान्यौ। सूरज-प्रभु कूरम तनु धान्यौ ।।7।।