सुफलकसुत के संग तै, हरि होत न न्यारे।
बार ह्मार जननी कहै, मोहिं तजि न दुलारे।।
कहा ठगौरी इन करी, मेरौ बालक मोह्यौ।
हा हा करि मै मरति हौ, मो तन नहिं जोह्यौ।।
नंद कह्यौ परबोधि कै, मै सँग लै जइहौ।
धनुषजज्ञ दिखराइ कै, तुरतहिं लै अइहौ।
घर घर गोपनि सौ कह्यौ, कर भार जुरावहु।
'सूर' नृपति के द्वार कौ, उठि प्रात चलावहु।।2976।।