यहै कहत बसुदेव त्रिया जनि रोवहु हो 3 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


जो मन इच्छा होइ तुरत देखौ मै करिहौ।
गगन धरनि पाताल जात कतहूँ नहिं डरिहौ।।
मातु हृदय की कही तब, मन बाढयौ आनंद।
महर सुवन मैं तौ नहीं, मै वसुदेव कौ नंद।।
राज करौ दिन बहुत जानि कै अब तुमकौ।
अष्ट सिद्धि नव निद्धि देउँ मथुरा घर घर कौ।।
रमा सेवकिनि दउँ करि, कर जोरै दिन जाम।
अब जननी जनि दुख करौ, करौ न पूरन काम।।
धनि जदुवसी स्याम चहूँ जुग चलति बड़ाई।
सेष रूपमय राम कहत नहिं बात बनाई।।
सूरज प्रभु दनुकूल दहन, हरन करन संसार।
ते पाए सुत तुमहि करि, करौ न सुख बिस्तार।।3090।।

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