बिनु गुपाल और मोहि, ऐसौ को सँभारे।
आपु हँसत दौरि मिले, उर ते नहि टारे।।
छीन अग जीने बसन, दीन मुख निहारे।
मम तन रज पथहि लगी, पीत पट सु झारे।।
सुखद सेज आसन दै, स्वहथ पग पखारे।
हरि हित हर गग धरे, पग जल सिर धारे।।
कहि कहि गुरु गेह कथा सकल दुख निवारे।
कहत बिप्र 'सूरदास' प्रभु ऊपर वारे।। 4244।।