तुम विनु साँकर को काकौ।
तुमही देहु बताइ देवमनि, नाम लेउँ धौं ताकौ।
गर्भ परीच्छित रच्छा कीनी, हुतौ नहीं बस मां कौ।
मटी पीर परम पुरुषोत्तम, दुख मेट्यौ दुहुँ-धाँ कौ।
हा करुनामय कुंजर टेरयौ, रहयौ नही बल, थाकौ।
लागि पुकार तुरत छुटकायौ, काटयौ बंधन ताकौ।
अंवरीष कौं साप देन गयौ, बहुरि पठायौ ताकौं।
उलटी गाढ़ परी दुर्बासैं, दहत सुदरसन जाकौं।
निधरक भए पांडु-सुत डोलत, हुतौ नहीं डर काकौ।
चारो वेद चतुर्भुख ब्रह्मा जस गावत है ताकौं।
जरासिंधु कौ जोर उघारयौ, फारि कियौ द्वै फाँकौ।
छोरी बंदि बिदा किए राजा, राजा ह्वै गए राँकौ।
सभा-माँझ द्रौपदि-पति राखी, पति पानिप कुल ताकौ।
बसन-ओट करि कोट विसंभर, परन न दीन्हौं झाँकौ।
भीर परै भीषन-प्रन राख्वौ, अर्जुन कौ रथ हाँकौ।
रथ तै उतरि चक्र कर लीन्हौ, भक्तबछल-प्रन ताकौ।
नरहरि ह वै हिरनाकुस मारयौ, काम परयौ, हो वाँकौ।
गोपीनाथ सूर के प्रभु कै बिरद न लाग्यौ टाँकौ।।113।।
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