तुम्‍हरी कृपा गोपाल गुसाई -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्‍हरौ




तुम्‍हरी कृपा गोपाल गुसाई, हौं अपने अज्ञान न जानत।
उपजत दोष नैन नहिं सूझत, रवि की किरनि बलूक न मानत।
सब सुख-निधि हरिनाम महामनि, सो पाएहुँ नाहीं पहिचानत।
परम कुवुद्धि, तुच्‍छ रस-लोभी, कौड़ो लगि मग की रज छानत।
सिव कौ धन, संतनि कौ सरबस, महिमा बेद-पुरान बखानत।
इते सान यह सूर महा सठ, हरि-नग बदलि, विषय-विष आनत।।।114।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः