अपनै जान मैं बहुत करी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावत



अपनैं जान मैं बहुत करी।
कौन भाँति हरि कृपा तुम्‍हारी, सो स्‍वामी, समुझी न परी।
दूरि गयौ दरसन के ताई, ब्‍यापक प्रभुता सब बिसरी।
मनसा-बाचा-कर्म-अगोचर सो मूरति नहिं नैन धरी।
गुम बिन गनी, सुरूप रूप बिन, नाग बिना श्री स्याम हरी।
कृपासिंधु, अपराध अपरिमित, छमौ, सूर तैं सब बिगरी।।।115।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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