हरि की सरन महँ तू आउ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ



            

हरि की सरन महँ तू आउ।
काम-क्रोध-ज्ञिषाद तृष्‍ना, सकल जारि बहाउ।
काम कैं बस जी परै जमपुरी ताकौं त्रास।
ताहि निसि-दिन जपत रहि जो सकल-जीव-निवास।
कहत यह बिधि भली तोसौं, जौ तू छाँड़ै देहि।
सूर स्‍याम सहाइ हैं तौ आठहूँ सिधि लेहि।।314।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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