तिहारौ कृष्‍न कहत कह जात -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ



            

तिहारौ कृष्‍न कहत कह जात ?
बिछुरैं मिलन बहुरि कब ह्वै है, ज्‍यौं तरवर के पात !
सीत-बात-कफ कंठ बिरोधै, रसना टूटै बात।
प्रान लए जम जात, मूढ-‍मति देखत जननी-तात।
छन इक माहिं कोटि जुग बीतत, नर की केतिक बात ?
यह जग-प्रीति सुवा-सेमर ज्‍यौं, चाखत ही उड़ि जात।
जम कैं फंद परयौ नहिं जब लगि, चरननि किन लपटात ?
कहत सूर बिरथा यह देहो, एतौ कत इतरात।।313।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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