स्यामह्रदय जलसुत की माला -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी



स्यामहृदय जलसुत की माला, अतिहिं अनुपम छाजै (री)।
मनहुँ बलाकपाँति नवधन पर, यह उपमा कछु भ्राजै (री)।।
पीत, हरित, सित, अरुन मालबन, राजति हृदय बिसाल (री)।
मानहुँ इंद्रधनुष नभमंडल, प्रगट भयौ तिहिं काल (री)।।
भृगु-पद-चिह्न उरस्थल प्रगटे, कौस्तुभ मनि ढिग दरसत (री)।
बैठे मानौ पट बिधु इक संग, अर्द्ध निसा मिलि हरषत (री)।।
भुजा बिसाल स्याम सुंदर की, चंदनखौरि चढ़ाए (री)।
‘सूर’ सुभग अँग अँग की शोभा, ब्रजललना ललचाए (री)।।1807।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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