साँवरै तनु कुसुँभि सारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग हमीर


साँवरै तनु कुसुँभि सारि, सोहति है नीकी (री)।
मानौ रतिपति सँवारी बनी, रवनि जी की (री)।।
राधा तै अतिहिं सरस, स्याम देखि भावै (री)।
ऐसी यह न नारि और, नारि मन चुरावै (री)।।
घूँघटपट बदन ढाँकि, काहै इन राख्यौ (री)।
चितवहु मो तन कुमारि, चंद्रावलि भाष्यौ (री)।।
आपुहिं पट दूरि कियौ, तरुनी बदन देख्यौ (री)।
मनही मन सफल जानि, जीवन जग लेख्यौ (री)।।
नैन नैन जोरत महि, भाव सौ लजाने (री)।
'सूर' स्याम नागरिमुख, चितवत मुसुकाने (री)।।2165।।

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