मथुरा मैं बस बास तुम्हारौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


मथुरा मैं बस बास तुम्हारौ?
राधा तै उपकार भयौ यह, दुर्लभ दरसन भयौ तुम्हारौ।।
बार बार कर गहि गहि निरखति, घूँघट ओट करौ किन न्यारौ।
कबहुँक कर परसति कपोल छुइ, चुटकि लेति ह्याँ हमहि निहारौ।।
कछु मैं हूँ पहिचानति तुमकौ, तुमहि मिलाऊँ नंददुलारौ।
काहे कौ तुम सकुचति हौ जू, कहौ कहा है नाम तुम्हारौ।।
ऐसी सखी मिली तोहिं राधा, तौ हमकौ काहै न बिसारौ।
'सूरदास' दंपति मन जान्यौ, यातैं कैसै होत उबारौ।।2166।।

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