इनकौ ब्रजही क्यौ न बुलावहु।
की वृषभानुपुरा, की गोकुल, निकटहि आनि बसावहु।।
येऊ, नवल, नवल तुमहूँ हौ, मोहन कौ दोउ भावहु।
मोकौ देखि कियौ अति घूँघट, काहै न लाज छुड़ावहु।।
यह अचरज देख्यौ नहि कबहूँ, जुवतिहि जुवति दुरावहु।
'सूर' सखी राधा सो पुनि पुनि, कहति जु हमहि मिलावहु।।2164।।