सबै दिन गए विषय के हेत।
तीनौं पन ऐसैं ही खोए, केस भए सिर सेत।
आँखिनि अंध, स्रवन नहि सुनियत, थाके चरन समेत।
गंगा-जल तजि पियत कूप-जल, हरि तजि पूजत प्रेत।
मन-बच-क्रम जौ भजै स्याम कौ, चारि पदारथ देत।
ऐसौ प्रभू छाँड़ि क्यौं भटकै, अजहूँ चेति अचेत।
राम नाम बिनु क्यौं छूटौगे, चंद गहै ज्यौं केत।
सूरदास कछु खरच न लागत, राम नाम मुख लेत।।296।।