श्री मथुरा ऐसी आजु बनी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


श्री मथुरा ऐसी आजु बनी।
जैसै पति कौ आगम सुनि कै, सजति सिंगार धनी।।
कोट मनौ कटि कसी किंकिनी, उपवन बसन सुरंग।
भूषन भवन विचित्र देखियत, सोभित सुंदर अंग।।
सुनत स्रवन घरियार घोर धुनि, पाइनि नूपूर बाजत।
अति संभ्रम अंचल चंचल गति, धामनि धुजा बिराजत।।
ऊँघ अटनि पर छत्रनि की छवि, सीसफूल मनौ फूली।
कनक कलस कुच प्रगट देखियत, आनँद कंचुकि भूली।।
बिद्रुम फटिक रचित परदनि पर, जालरंध्र की रेख।
मनहु तुम्हारे दरसन कारन, भूले नैन निमेष।।
चित दै अवलोकहु नँदनंदन, पुरी परम रुचि रूप।
'सूरदास' प्रभु कंस मारिकै, होहु इहाँ के भूप।।3022।।

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