बार बार बलराम को, मधुपुरी बतावत।
छज्जनि महलनि देखि कै, मन हरष चढ़ावत।।
जन्मथान जिय जानि कै, तातै सुख पावत।
बन उपवन छाये सघन, रथ चढे जनावत।।
नगर सोर अनकत स्रवन, अति रुचि उपजावत।
सुनत सब्द घरियार को, नृप द्वार बजावत।।
बरन बरन मंदिर बने, लोचन ठहरावत।
'सूरज' प्रभु अक्रूर सौ कहि देखि सुनावत।।3021।।