वैसी सारँग करहि लिए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


वैसी सारँग करहि लिए ।
सारंग कहत सुनत वै सारँग, सारँग मनहि दिए ।।
सारँग थकित बैठि वह सारँग, सारँग बिकल हिए ।
सारँग धुकि, सारँग पर सारँग, सारँग क्रोध किए ।।
सारँग है भुज करनि विराजत, सारँग रूप दिए ।
'सूरदास' मिलही वै सारँग, तौ पै सुफल जिए ।। 3365 ।।

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