जियहि क्यौ कमलिनि काँदौ हीन।
जिनसौ प्रीति हुती री सजनी, तिनहुँ बिछुरि दुख दीन।।
सागर कूल मीन तरफति है, हुलस होत जल जी न।
स्याम वारिबिधि लई विरद तजि, हम जु मरतिं लव लीन।।
ससि चंदन अरु अंभ छाँड़ि गुन, बपु जु दहत मिलि तीन।
'सूरदास' प्रभु मौन सबै ब्रज, बिनु जत्री ज्यौ बीन।। 3364।।