लछिमन सीता देखी जाइ।
अति कृस,दीन, छीन तन प्रभु बिनु, नैननि नीर बहाइ।
जामवंत-सुग्रीव-बिभीषन, करी दंडवत आइ।
आभूषन बहुमोल पटंबर, पहिरौ मातु बनाइ।
बिनु रघुनाथ मोहिं सब फीके, आज्ञा मेटि न जाइ।
पुहुप बिमान बैठी बैदेही, त्रिजटी सब पहिराइ।
देखत दरस राम मुख मोरयौ, सिया परी मुरझाइ।
सूरदास स्वामी तिहुँ पुर के, जग-उपहास डराइ॥161॥